गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 4‘बन्धनानि खलु सन्ति बहूनि; ‘रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् अर्थात, भ्रमर कमल-पुष्प-मकरन्द-पान में लीन था तभी सूर्य भगवान् अस्ताचलगामी हो गये; कमल मुकुलित हुआ; भ्रमर भी उस मुकुलित कमल में ही बँधा रह गया; नेह भरा भ्रमर अपने प्रेमास्पद कमल की पँखुड़ियों को काटने में विवश हो विचार कर रहा है कि पुनः रात्रि व्यतीत होगी, पुनः सुप्रभात होगा; सूर्योदय होने पर मुकुलित कमल पुनः प्रस्फुटित होगा; कमल के पुनः प्रस्फुटित होते ही मैं मुक्त हो जाऊँगा। परन्तु हा, हन्त! रात्रि व्यतीत होने से पूर्व ही कोई महामत्त गजेन्द्र उस सरोवर में अवगाहन करता हुआ उन कमलिनियों को समूल उखाड़ता-रौंदता आ घुसा। |