गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3विष्णु की पालनी-शक्ति के द्वारा ही जगत् सुरक्षित है; जीवन सुरक्षित रहने पर ही सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान की चर्चा सम्भव होती है।
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘रामचरित-मानस’ का भी महातात्पर्य एकमात्र परात्पर परब्रह्म राम में ही है तथापि अवान्तर तात्पर्य अन्यान्य विषयों में भी है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि सम्पूर्ण अध्ययन-अध्यापन यज्ञ-तप आदि सम्पूर्ण क्रिया-कलाप को बन्द कर दिया जाय। गोस्वामीजी स्वयं ही कहते हैं - ‘भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी।। वेद-शास्त्रानुमोदित मार्ग के अनुसार व्यक्ति स्वधर्म एवं स्वकर्म में स्थिर रहे। ‘राम-नाम अवलंबन एक’ का तात्पर्य भी यही है कि एक राम-नाम के साधन बिना इतर सम्पूर्ण साधन शून्यवत् हैं। जैसे अंक के सहयोग से प्रत्येक शून्य भी क्रमशः शताधिक मूल्यवान होता जाता है परन्तु अंक रहित हो निष्प्रयोजन हो जाता है वैसे ही राम-नाम-अंक बिना सम्पूर्ण अन्य साधन निष्प्रयोजन हो जाते हैं- ‘राम-नाम एक अंक है, सब साधन हैं सुन्यं |