गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 147

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 3

विष्णु की पालनी-शक्ति के द्वारा ही जगत् सुरक्षित है; जीवन सुरक्षित रहने पर ही सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान की चर्चा सम्भव होती है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘रामचरित-मानस’ का भी महातात्पर्य एकमात्र परात्पर परब्रह्म राम में ही है तथापि अवान्तर तात्पर्य अन्यान्य विषयों में भी है।

स्वयं गोस्वामीजी कहते हैं-

   
‘नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। रामनाम अवलंबन एकू।।’[1]

इसका यह तात्पर्य नहीं कि सम्पूर्ण अध्ययन-अध्यापन यज्ञ-तप आदि सम्पूर्ण क्रिया-कलाप को बन्द कर दिया जाय। गोस्वामीजी स्वयं ही कहते हैं -

‘भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी।।
प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज-निज कर्म निरत श्रुति-रीती।।’[2]

वेद-शास्त्रानुमोदित मार्ग के अनुसार व्यक्ति स्वधर्म एवं स्वकर्म में स्थिर रहे। ‘राम-नाम अवलंबन एक’ का तात्पर्य भी यही है कि एक राम-नाम के साधन बिना इतर सम्पूर्ण साधन शून्यवत् हैं। जैसे अंक के सहयोग से प्रत्येक शून्य भी क्रमशः शताधिक मूल्यवान होता जाता है परन्तु अंक रहित हो निष्प्रयोजन हो जाता है वैसे ही राम-नाम-अंक बिना सम्पूर्ण अन्य साधन निष्प्रयोजन हो जाते हैं-

‘राम-नाम एक अंक है, सब साधन हैं सुन्यं
अंक गए कुछ है नहीं, अंक रहे दस गुन्य।।’[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मानस, बा. का. 27। 7
  2. मानस, अरण्य का. 16। 3
  3. दोहावली 10

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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