गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3प्रसिद्ध है कि राम-राज्य में सब प्राणी आधि-व्याधि एवं मनस्ताप से मुक्त थे। ‘नाधयो व्याधयश्चासन् दैवभूतात्महेतवः। गोस्वामी तुलसीदास कहते हें - ‘सब नर करहिं परस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्मनिरत श्रुति नीती। एक कथा है- राघवेन्द्र रामचन्द्र के शासन काल में किसी ब्राह्मण-पुत्र की अकाल मृत्यु हो गई; अपने मृत पुत्र को लेकर ब्राह्मण ने राजदरबार में पुकार की; महाराजा रामचन्द्र अत्यन्त चिन्तित हो पड़े; प्रस्तुत समस्या-निराकरण हेतु जाबालि-वामदेवादि ऋर्षि-महर्षियों को निमंत्रित किया गया और उसका हल खोजा गया। तात्पर्य कि सम्यक् शासन-पद्धति से ही प्रजा का कल्याण सम्भव है। स्वधर्म-निष्ठा ही श्रेयस्कर है- ‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।’[2] |