गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3गोस्वामीजी की यह विशेषता है कि राम को ही परब्रह्म प्रतिपाद्य मानते हुए भी मूलतत्त्व से विस्मृत नहीं होते। गौरी की स्तुति करते हुए गोस्वामीजी गौरी को ही ब्रह्म कहते हैं- ‘जय जय गिरिवरराज किसोरी। ब्रह्म का लक्षण है, ‘जन्माद्यस्य यतः’, ‘यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति, यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति तद् ब्रह्म’ जिससे सम्पूर्ण प्रपन्च उत्पन्न होता है, जिसमें सम्पूर्ण प्रपन्च स्थित रहता है और जिसमें सम्पूर्ण प्रपन्च लीन हो जाता है वही ब्रह्म है। गौरी भी ‘भव भव विभव पराभव कारिणी’ हैं अतः गौरी भी ब्रह्म है। तात्पर्य कि जैसे कोई नट लीलार्थ अनेक वेष धारण कर अनेक भावों का प्रदर्शन करता है तथापि वह वैसे ही परात्पर परब्रह्म ही लीलार्थ अनेकधा प्रकट होते हैं तथापि अपने मूल स्वरूप में तटस्थ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मानस, बा. का. 234। 5-8