गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3सम्पूर्ण वेदों का वेद्य एकमात्र परब्रह्म परमात्मा है तथापि वेदों में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि का भी प्रतिपादन हुआ है। जैसे उपाख्यान के पात्रों में उनके रूप एवं वेश-भूषा में अन्तर हो जाता है तथापि कथावस्तु अभिन्न रहती है वैसे ही सम्पूर्ण ग्रन्थ भी वेदों के महातात्पर्य एकमात्र परात्पर परब्रह्म का ही प्रतिपादन करते हुए भी उनके अवान्तर तात्पर्य कर्म एवं उपासना का भी प्रतिपादन करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं - ‘धरम तें विरति जोग तें ग्याना। भगवान ही मुक्तोपसृप्य हैं; निवारण-ब्रह्म ही मोक्ष है, सावरण-ब्रह्म ही जगत् है। निरावरण-ब्रह्म को प्राप्त करने के हेतु ज्ञान आवश्यक है; ज्ञान के लिए साक्षात्कार, साक्षात्कार के लिये योग, योग के लिए परम एकाग्रता-समाधि एवं समाधि के लिये वैराग्य आवश्यक है। धर्मानुष्ठान से ही वैराग्य सम्भव है; वर्णाश्रमानुसारी श्रौत-स्मार्त्त कर्म का आचरण ही धर्मानुष्ठान है। ‘तावत् कर्माणि कुर्वीत न निर्विद्येत यावता। जब तक संसार से वैराग्य तथा भगवद्-कथामृत से अनुराग न हो जाय तब तक धर्मानुष्ठान ही कर्तव्य है। धर्मानुष्ठान भी प्रधानतः शुद्ध राजनीति पर ही आधारित है। जीवन-यापन सुरक्षित रहने पर ही शास्त्र एवं सिद्धान्त-चर्चा सम्भव होती है। एतावता सम्यक् राजनीति द्वारा सुरक्षित जनता में ही धर्मज्ञान, ब्रह्म-ज्ञान की चर्चा सम्भव है। कहते हैं - ‘भूखे भजन न होय गोपाला, ले लो अपनी कण्ठी माला।’ |