गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3हे सच्चिदानन्दघन, परात्पर, परब्रह्म, आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्द अपने साक्षात्कार द्वारा ‘व्यालराक्षसात्’ और ‘वर्षमारुताद्’ अविलम्ब ‘वयं रक्षिताः’ हमारी रक्षा करें। भगवत्-तत्त्व-विज्ञान से ही श्रुतियाँ रक्षित होती हैं। तात्पर्य कि भगवत्-साक्षात्कार से ही अननुष्ठापकत्व-लक्षण-अप्रामाण्य तथा अबोधकत्व-लक्षण-अप्रामाण्य का अप्यय हो जाता है अतः भगवत्-विज्ञान से ही श्रुतियों की रक्षा सम्भव है। ‘एकस्मिन् विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति।’ एक के विज्ञान से ही सम्पूर्ण का परिज्ञान हो जाता है, कारण के विज्ञान से सम्पूर्ण कार्य का विज्ञान स्वाभाविक है। सम्पूर्ण शास्त्रों का, वेद-वेदांगों का अध्ययन कर लेने पर भी भगवत्-साक्षात्कार न होने पर मिथ्या अहंकार हो जाता है और अपने-आपको ‘अनूचानमानी’ अनूचान हम तत्त्वज्ञ हो गये हैं ऐसा समझने लगता है। उद्दालक-पुत्र श्वेतकेतु का चरित्र इस तथ्य का समर्थक है। विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन करने पर श्वेतकेतु को अहंकार हो गया; पुत्र के अहंकार को तोड़ देने के लिये उद्दालक ने उससे प्रश्न किया-‘उततमादेशमप्राक्षयः, येनाश्रुतं श्रुतं भवति ............. अविज्ञातं विज्ञातमिति।’ |