गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3श्रीमद्भगवद्-वाक्य है, ‘बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान् मां प्रपद्यते’ ज्ञानी भी बहुत जन्मों के अन्त में मेरा साक्षात्कार कर पाते हैं। कथा है कि भक्त ध्रुव को छः महीनों के अल्पकाल में ही भगवत्साक्षात्कार हो गया। भक्त भगवान् से पूछ रहा है, “हे भगवन्! हमने तो सुना है कि आपके दर्शन बड़े दुर्लभ हैं, आप अत्यन्त दुराराध्य हैं, फिर मुझे इतने शीघ्र कैसे प्राप्त हुए?” उत्तर में भगवान् ने भक्त को दिव्य-दृष्टि दी; भक्त ध्रुव ने दखा कि उसके अनेक जन्मों में प्राप्त विभिन्न देह तपस्या करते हुए ही व्यतीत हो गये हैं। तात्पर्य कि अनेकानेक जन्म-जन्मान्तरों की कठिन तपस्या के अनन्तर ही बालक ध्रुव को सद्यः भगवत्-साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ‘महाभारत’ में भी द्वित-त्रित महर्षि की एक कथा है। भगवत्-साक्षात्कार करा देने की महर्षि ने प्रतिज्ञा की; तदर्थ सांगोपांग यज्ञ, मन्त्र, जपादि किया परन्तु असफल ही रहे। लज्जित हो महर्षि स्वयं ही ब्रह्म-साक्षात्कार का संकल्प कर श्वेत-द्वीप चले गए; कठिन तपस्या के अनन्तर वहाँ उनको कुछ शब्द सुनाई पड़ा, ‘जितं ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन।’ इसके बाद आदेश हुआ कि रामावतार में कपि-शरीर धारण करने पर तुम्हें भगवत्-साक्षात्कर प्राप्त होगा। गोपांगनाएँ प्रार्थना कर रही हैं कि हे व्रजेन्द्रनन्दन! आपने बारम्बार भयंकर आपदाओं से हमारी रक्षा की, किन्तु अब आप किंचिन्मात्र वस्तु के दान में उदासीन हो रहे हैं; क्या यह उचित है? क्या यह आपका अनौदार्य नहीं है? |