गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
दसवाँ अध्याय
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन । व्याख्या- भगवान अपनी तरफ दृष्टि कराते हैं कि अनन्त ब्रह्माण्डों में सब कुछ मैं ही तो हूँ! मेरी तरफ देखने से फिर कोई भी विभूति बाकी नहीं रहेगी। जब सम्पूर्ण विभूतियों का आधार, आश्रय, प्रकाशक, बीज (मूल कारण) मैं तेरे सामने बैठा हूँ, तो फिर विभूतियों का चिन्तन करने की क्या जरूरत? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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