गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
दसवाँ अध्याय
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव । व्याख्या- भगवान को अपनी शक्ति से कोई नहीं जान सकता, प्रत्युत भगवान की कृपा से ही जान सकता है। भगवान के यहाँ बुद्धि के चमत्कार अथवा विविध प्रकार की सिद्धियाँ नहीं चल सकतीं। बड़े-से-बड़े भौतिक आविष्कार से कोई भगवान को नहीं जान सकता। देवताओं की दिव्यशक्ति तथा दानवों की मायाशक्ति कितनी ही विलक्षण होने पर भी भगवान के सामने कुण्ठित हो जाती है। स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम । व्याख्या- आप स्वयं ही स्वयं के ज्ञाता हैं- ऐसा कहने का तात्पर्य है कि जानने वाले भी आप ही हैं, जानने में आने वाले भी आप ही हैं और जानना भी आप ही हैं अर्थात सब कुछ आप ही हैं। जब आप के सिवाय और कोई है ही नहीं तो फिर कौन किसको जाने? और क्या जाने? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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