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गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
पाँचवाँ अध्याय
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् । स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: । व्याख्या- बाहर के पदार्थों को बाहर ही छोड़ने का तात्पर्य है कि साधक की वृत्ति में एक परमात्मतत्त्व के सिवाय अन्य कोई भी सत्ता न रहे। मुक्ति स्वतःसिद्ध है, पर मिलने और बिछुड़ने वाले प्राणी- पदार्थों की सत्ता, महत्ता और अपनापन होने के कारण उसका अनुभव नहीं होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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