योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 86

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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सत्रहवाँ अध्याय
राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका


राजा जरासंध पर जय प्राप्त करके कृष्ण आदि महाराज युधिष्ठिर की राजधानी में लौट आये। युधिष्ठिर ने यथायोग्य उनका सम्मान किया और गद्गद हो कृष्ण को गले से लगाया। अब यज्ञ की तैयारियाँ होने लगीं। सभामंडप बड़ी धूमधाम से सजाया गया। राजा-महाराजाओं के पास दूत भेजे गये। भोजन आदि का पूरा प्रबन्ध किया गया। दूर-दूर से वेद-पाठी विद्वान ब्राह्मण निमंत्रित हुए। हवन की सामग्री में बहुमूल्य सुगन्धी वाले पदार्थ मँगाये गये। दान देने के लिए सोना, चाँदी, रत्न तथा वस्त्राभूषण एकत्र किये गये। अतिथियों के निवास के लिए सुन्दर महल सजाये गये और कोसों तक डेरे तथा तंबू लगाये गये।

धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, द्रोण, दुर्योधन, कर्ण तथा दूसरे भ्रातृगण एकत्रित हुए।[1]

अब जब तैयारियाँ पूरी हो गई तो भाई-बन्धुओं में से यज्ञ के कार्यकर्ता नियत किये गये। श्रीकृष्ण ने अपने लिए यह काम स्वीकार किया कि जो ब्राह्मण यज्ञ कराने के लिए यज्ञशाला में आयेंगे उनके चरण धो देंगे और यज्ञशाला पर पहरा भी देंगे। इस प्रकार जब सब तैयारियाँ समाप्त हुई और यज्ञ के प्रारम्भिक कृत्य होने लगे तो अब यज्ञकर्ता की ओर से सभी अतिथियों को भेंट देने का समय आया।[2] इस विषय में भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा, "हे युधिष्ठिर! अतिथियों को भेंट देने का समय आ पहुँचा है। अब तुम्हें उचित है कि प्रत्येक को यथायोग्य भेंट प्रदान करो। छः प्रकार के पुरुष तुमसे इस सम्मान को पाने के अधिकारी हैः

  1. गुरु,
  2. यज्ञ करने वाले पंडित,
  3. सम्बन्धी
  4. स्नातक ब्राह्मण,
  5. मित्र,
  6. राजे-महाराजे।

सबसे पहले उस पुरुष के सामने भेंट रखो जिसे तुम इस सारी सभा में श्रेष्ठ समझते हो।" मुख से कह देना या लेखनी से लिखना तो सहज है, पर ऐसी प्रतिष्ठित सभा में जहाँ विद्वान और वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण और शूरवीर क्षत्रिय राजा-महाराजा बैठे थे, वहाँ यह निर्णय करना बड़ा कठिन था कि कौन इस सबमें श्रेष्ठ और सबसे अधिक गौरव का पात्र है।

एक ओर धृतराष्ट्र और भीष्म जैसे सज्जन और ज्येष्ठ पुरुष, दूसरी ओर द्रोण जैसे आचार्य, तीसरी ओर शूरवीर और धनाढ्य राजा-महाराजा थे। युधिष्ठिर चकित था कि ऐसी भारी सभा में मैं किसे सबका शिरोमणि मानूँ। निदान उसने महाराज भीष्म से प्रार्थना करते हुए कहा कि आप ही मुझे बताइये कि इस महती सभा में कौन महापुरुष मुझसे पहले सम्मान[3] पाने का अधिकारी है।

भीष्म ने उत्तर दिया, "हे युधिष्ठिर! इस सभा में कृष्ण सूर्य के समान चमक रहे हैं। वही सबसे बढ़कर गौरव पात्र हैं। उठिये! और सबसे पहले उन्हीं को भेंट[4] दीजिए।"

युधिष्ठिर ने कहा, "तथास्तु।"

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिन राजा-महाराजाओं के नाम महाभारत में, राजसूय यज्ञ में सम्मिलित होने की सूची में दिये हैं, उनसे ज्ञात होता है कि इस यज्ञ में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजा सम्मिलित थे। दक्षिण के द्रविड़ और सिंहल के राजाओं के नाम भी उस सूची में लिखे हैं। उत्तर दिशा में कश्मीर, पूर्व दिशा में बंग (बंगाल) और पश्चिम दिशा में मालव, सिन्ध इत्यादि का।
  2. प्राचीन आर्यावर्त में यह रीति थी कि प्रत्येक धार्मिक कार्य के आरम्भ में कार्यकर्ता ऐसे पुरुषों को जो आदर-सत्कार के अधिकारी होते थे 'अर्घ्य' दिया करते थे। 'अर्घ्य' चंदन, फूल, फल इत्यादि में तैयार किया जाता था। हमने 'अर्घ्य' की जगह 'भेंट' शब्द का प्रयोग किया है।
  3. अर्घ्य
  4. अर्घ्य

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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