योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
सोलहवाँ अध्याय
कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन
जरासंध के मरते ही कृष्ण ने भीम व अर्जुन को रथ पर सवार कराया और आप सारथी बनकर दुर्ग में प्रवेश किया। उन्होंने सबसे पहले उन राजाओं को बन्दीगृह से छुटकारा दिलाया जो वर्षों से उसमें पड़े सड़ रहे थे। फिर उन सबको अपने साथ लाकर नगर से बाहर एक शिविर में रखा। इन सब राजाओं ने कृष्ण के समक्ष हीरे आदि रत्नों की भेंट चढ़ाई प्रसन्नतापूर्वक अपने लिए कुछ सेवा का आदेश करने की याचना की। इस पर कृष्ण महाराज ने उत्तर दिया, महाराजा युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करना चाहते हैं। आपको चाहिए कि उनको इस यज्ञ में सहायता देकर उनके प्रति अपनी भक्ति को सिद्ध करें। इस बात को सुनकर सारे राजाओं ने एकमत होकर इसे स्वीकार किया। जरासंध का पुत्र सहदेव भी भेंट लेकर उपस्थित हुआ और महाराज कृष्णचन्द्र ने प्रसन्न होकर सबके सामने उसका राजतिलक कर दिया और पिता की गद्दी पर बिठाया। इन कामों से निश्चित होकर वे वहाँ से से चले आये। (1) महाराज कृष्ण का स्नातक के वेष में फूल माला पहनकर जरासंध के दरबार में जाना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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