श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
नागरीदास जी
'उनको श्री हिताचार्य की वाणी से अत्यन्त प्रेम था। वे प्रति दिन हित-वाणी के किसी एक पद को उठा लेते और चोबीसो घंटे उसी की भावना में मग्न रहते थें। हित-वाणी के आगे उनको श्रीमदभागवत की कथा भी फींकी लगती थी और यथा संभव वे उसका श्रवण नहीं करते थे। जो लोग वृन्दावन-रस-रीति से रहित थे, वे उनकी यह गति देख कर दु:ख पाते और गुरूकुल से इस बात की शिकायत करते रहते थे। 'उस समय श्री वनचन्द्र गोस्वामी के पुत्र नागरवर गोस्वामी राधावल्लभ जी के मन्दिर में भागवत की कथा कहते थे। चुगल-खोरों ने उनको नागरीदास जी के के विरूद्ध भड़का दिया। एक दिन नागरवर जी ने नागरीदास जी से कहा, 'आज कल दशम स्कंध की कथा हो रही हैं, इसको तो आपको अवश्य श्रवण करना चाहिये।' नागरीदास जी गुरू-आज्ञा मानकर कथा में पहुंचे तो वहां धेनुक-वध का प्रसंग चल रहा था। कथा में, भगवान ने धेनुक के पैर पकड़ कर जैसे ही उसे पछाड़ा, नागरी-दास जी अकुला कर खड़े हो गये और कथा-स्थल छोड़कर अपने घर चले गये। उनके इस आचरण से सब लोग चकित हो गये। बाद में, गोस्वामी नागरवर जी ने उनको शपथ दिला कर कथा छोड़कर चले जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बतलाया कि वे हित प्रभु के एक पद की भावना में मग्न थे कि भगवान के द्वारा धेनुक के पैर पकड़ कर उसको पछाड़ने की बात उनके कानो में पड़ी और उनका मन यह सोचकर घबरा गया कि जो श्यामसुन्दर मानवती श्री राधा की सुन्दर चिबुक सहला कर उनके मान को दूर करते है, उनके हाथों में गधे के पैर कैसे शोभा देगे! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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