हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 281

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


हरषित बैनु बजायौं छैल, चंदहि बिसरी घर की गैल।
तारा गन मन में लजे।।
मोहन धुनि बैकुंठहि गई, नारायन मन प्रीति जु भई।
वचन कहे कमला सुनौ।।
कुंज बिहारी विहरत देखि, जीवन जनम सफल करि लेखि।
यह सुख हमको है कहाँ।।
श्री वृन्‍दावन हमते दूरि, कैसे करि उडि लागै धूरि।
 रास-रसिक गुन गाइ हौं।।
तिनहि लिवाय जमुन तट गयौ, दूरि कियौ श्रम अति सुख भयौ।
 जल में खलत रंग रह्यौ।।
जैसे मद-गज कूल विदारि, ऐसैं खेल्‍यौ संग ले नारि।
 संक न काहू की करी।।
ऐसे लोक-वेद की मैड़, तोरि कुंवर खेल्‍यौ करि ऐड़।
  मन में धरी फबी सबै।।
जल-थल क्रीडत बीडत नहीं, तिनकी लीला परत न कही।
 रास-रसिक गुन गाइ हौं।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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