हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 280

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


रास पंचाध्‍यायी

नव कुम-कुम जल बरसत जहां, उड़त कपूर धूर जहां-तहां।
 और फूल-फल को गनै।।
तहां श्‍याम धन रास जु रच्‍यो, मरकत मनि कंचन सो खच्‍यो।
शोभा कहत न आवहीं।।
जोरि मडली जुवतिनि बनी, द्वै-द्वै बीच आपु हरि धनी।।
अदभुत कौतुक प्रगट कियौ।
घूंघट मुकट विराजत सिरन, शशि चमकत मनौ कौतुक किरन।
रास रसिक गुन गाइहों।
नील कंचुकी मांडनि लाल, भुजनि नवैया उर वनमाल।
पीत पिछौरी श्‍याम तन।।
सुन्‍दर मुदरी पहुंची पानि, कटि-तन कछनी किंकिन बानि।
गुरू नितम्‍ब बैनी रूरै।।
तारा मंडल सूथन जघन, पाइनि पैजनि नूपुर सघन।
नखनि महावर खुलि रहयो।
राधा मोहन मंडल मांझ, मनहुं विराजत संध्‍या-सांझ।
रास रसिक गुन गाइहों।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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