हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 275

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


धनी तेरी माता जिन तू जाई।
व्रज-नरेश वृषभानु धन्‍य जिहिं नागरि कुंवरि खिलाई।।
धन्‍य श्रीदामा भैया तेरो कहत छबीली बाई।
धनि बरसनों हरिपुर हूं तें ताकी बहुत बड़ाई।।
धन्‍य श्‍याम बड़भागी तेरो नागर कुंवर सदाई।
धन्‍य नंद की रानी जसुदा जाकी बहू कहाई।।
धन्‍य कुंज सुख पुंजनि बरसत तामें तू सुखदाई।
धन्‍य पुहुप शाखा द्रुम पल्‍लव जाकी सेज बनाई।।
धन्‍य कल्‍परू वंशीवट धनि बन-विहार रह्मो छाई।
धनि यमुना जाको जल निर्मल अचंवत सदा अंघाई।।
धन्‍य रास की धरनी जहं तू रूचि के सदा नचाई।
धनि वंशी सब जगत प्रसंशी राधा नाम रटाई।।
धन्‍य सखी ललितादिक निसि दिन निरखत केलि सदाई।
धन्‍य अनन्‍य व्‍यास की रसना जिहिं रस कीच मचाई।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः