हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 274

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


व्‍यास जी के पदों की भाषा अधिकांश में बोल-चाल की व्रज-भाषा है, कहीं-कहीं बुंदेल खंड के शब्‍दों का प्रयोग मिलता है, जैसे गुदरवी, वरवट, गुदी, गटी इत्‍यादि। रस क पदों में संभोग श्रृंगार की अनन्‍त वैचित्री को चमत्‍कार पूर्ण ढंग से व्‍यक्‍त किया गया है। व्‍यास जी सुकवि है, और वे शब्‍द–चित्रों के आलेखन में और अलंकार-योजना में समान रूप से सफल हुए हैं। उनकी रचना के कुछ उदाहरण दिये जाते है।

(श्री) वृन्‍दावन की शोभा देखत मेरे नैन सिरात।
कुंजनि कुंज पुंज सुख बरसत हरखत सबके गात।।
राधा मोहन के निजु मंदिर महा प्रलय नहिं जात।
ब्रह्म तें उपज्‍यों न अखंडित कबहूँ नाहिं नसात।।
फन पर, रवि तर, नहिं विराट महें, नहिं संध्‍या, नाहिं प्रात।
माया काल रहित नित नूतन सदा फूल फल पात।।
निर्गुन-सगुन ब्रह्म तें न्‍यारों विहरत सदा सुहात।
व्‍यास विलास रास अद्भुत गति निगम-अगोचर बात।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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