श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
प्रथम पत्री। श्री सकल गुण सम्पन्न, रस रीति बढ़ावन, चिरंजीव, मेरे प्राणन के प्राण वीठलदास जोग्य लिखितं श्रीवृन्दावन रजोप सेवी श्री हरिवंश जोरी-सुमिरन वचनो। जोरी-सुमिरन मत्त रहो। जोरी जोहं सुख बरसत हैं। तुम कुशल स्वरूप हो। तिहारे हस्ताक्षर बारम्बार आवत हैं। सुख अमृत स्वरूप हैं। पत्री वांचत आनंद उमडि़ चले है। मेरी बुद्धि को इतनी शक्ति नहीं जो कहि सकों, पर तोहि जानत हों। श्रीस्वामिनी जू तुम पर बहुत प्रसन्न हैं। हम कहां आशीर्वाद देंय, हम यही आशी- र्वाद देत हैं कि तिहारो आयुष बढ़ो और तिहारी सकल सम्पति बढ़ो। तिहारे मन को मनोरथ पूर्ण होहु, हम नेत्रनि सुख देखे, हमारी भेट यही है। यहां की काहू बात की चिन्ता मत करो, तेर पहिचान तें मोकू श्रीश्यामा जू बहुत सुख देत हैं। तुम लिखी जो दिन दश में आवेगे, सोई आशा प्राण रहे हैं। श्री श्यामा जू बेगि ले आवे। चिरंजीव कृष्णदास को जोरी प्रसन्न है। श्याम-वंदिनी विहार चंदन लेनों। गोविन्ददास, संतदास की दंडौत, गांगू मैदा को कृष्ण-सुमिरन वांचनों, कृष्णदास मोहनदास को कृष्ण-सुमिरन, रंगा की दंडोत, वनमाली धर्मशाला को कृष्ण-सुमिरन वांचनो। द्वितीय पत्री। श्री वृषभानु नंदिनी जयति। जोग्य लिखित श्रीहरिवंश बीठलदास के कोटि-कोटि अपराध में खेबी, आगले पाछिले। बीठलदास मेरे प्राण हैं। जो शास्त्र-मर्यादा सत्य है और गुरू महिमा ऐसे ही सत्य है तो व्रज-नव तरूणि-कदम्ब-चूड़ामणि श्रीराधे तिहारे स्थापे गुरू-मार्ग विषे अविश्वास अज्ञानी को होत है, ताते यह मर्यादा राखनों। तुम दोऊ सफल आनंद बरसो। बीठलदास को अही सींचनो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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