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− | ; | + | ;श्रीगोवर्धन-मौलिमण्डन-महारत्नोत्तमं राधिका- |
;कुण्डं मोहनपुण्डरीकनयन-प्राणेश्वरीवल्लभम्। | ;कुण्डं मोहनपुण्डरीकनयन-प्राणेश्वरीवल्लभम्। | ||
;घूर्णन्मौलिविलोलकुण्डवरं तुण्डेन्दुम्बोल्लसद्- | ;घूर्णन्मौलिविलोलकुण्डवरं तुण्डेन्दुम्बोल्लसद्- | ||
;वंशं शंसति यत्र मादकगुणान रोमांचितोमाधवः।।13।।</center> | ;वंशं शंसति यत्र मादकगुणान रोमांचितोमाधवः।।13।।</center> | ||
− | जहाँ माधव पुलकित होकर मस्तक आन्दोलन करते हुए डोलामय कुण्डलों से एवं मुखचन्द्र की छटा से चारों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं तथा अपनी वंशी से उन्मादनकारी गुणों का अलाप करते हैं एवं जो कमलनयन प्राणेश्वरी वल्लभ श्रीमोहन को एकान्त प्रिय है, | + | जहाँ माधव पुलकित होकर मस्तक आन्दोलन करते हुए डोलामय कुण्डलों से एवं मुखचन्द्र की छटा से चारों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं तथा अपनी वंशी से उन्मादनकारी गुणों का अलाप करते हैं एवं जो कमलनयन प्राणेश्वरी वल्लभ श्रीमोहन को एकान्त प्रिय है, श्रीगोवर्धन का मुकुटमणि महारत्न-श्रेष्ठ, यही श्रीराधाकुण्ड है।।13।। |
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;श्रीवृन्दावन शोभयाऽपि परयाश्लाघ्यां हरेर्वल्लभ- | ;श्रीवृन्दावन शोभयाऽपि परयाश्लाघ्यां हरेर्वल्लभ- | ||
− | ; | + | ;श्रीगोवर्धन शैलराजशिरसाऽप्यत्यादरेणानताम्। |
;राधाकृष्ण महाद्भुतस्मरकला-माधुर्य्यशोभाभरां | ;राधाकृष्ण महाद्भुतस्मरकला-माधुर्य्यशोभाभरां | ||
;वल्लीमण्डपमण्डलीं स्मर सखे! श्रीराधिका-कुण्डगाम् ।।14।।</center> | ;वल्लीमण्डपमण्डलीं स्मर सखे! श्रीराधिका-कुण्डगाम् ।।14।।</center> | ||
− | हे सखे! परम उत्कृष्ट [[वृन्दावन|श्रीवृन्दावन]] शोभा के द्वारा भी जो प्रशंसनीय है, श्रीहरि-प्रिय | + | हे सखे! परम उत्कृष्ट [[वृन्दावन|श्रीवृन्दावन]] शोभा के द्वारा भी जो प्रशंसनीय है, श्रीहरि-प्रिय श्रीगोवर्धन गिरिराज भी उसकी आदर से वन्दना करता है, [[श्रीराधा]]-[[कृष्ण]] की काम कलाओं की माधुर्य शोभा से परिपूर्ण श्रीराधाकृण्ड स्थित उस लता-मण्डप समूह को स्मरण कर ।।14।। |
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01:14, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जहाँ माधव पुलकित होकर मस्तक आन्दोलन करते हुए डोलामय कुण्डलों से एवं मुखचन्द्र की छटा से चारों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं तथा अपनी वंशी से उन्मादनकारी गुणों का अलाप करते हैं एवं जो कमलनयन प्राणेश्वरी वल्लभ श्रीमोहन को एकान्त प्रिय है, श्रीगोवर्धन का मुकुटमणि महारत्न-श्रेष्ठ, यही श्रीराधाकुण्ड है।।13।।
हे सखे! परम उत्कृष्ट श्रीवृन्दावन शोभा के द्वारा भी जो प्रशंसनीय है, श्रीहरि-प्रिय श्रीगोवर्धन गिरिराज भी उसकी आदर से वन्दना करता है, श्रीराधा-कृष्ण की काम कलाओं की माधुर्य शोभा से परिपूर्ण श्रीराधाकृण्ड स्थित उस लता-मण्डप समूह को स्मरण कर ।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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