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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
अहो! [[श्रीराधा]-कृष्ण का अनन्त मधुर के लिए समूह द्वारा जो सदा महा अद्भुत हो रहा है, एवं चमत्कारी महारस का समुद्र है तथा महान उज्ज्वल एवं महान सुगन्धिपूर्ण है, श्रीवृन्दावन में विराजमान केलि-उन्मत्त वृन्दावनेश्वरी श्रीराधाजी के प्रिय उस दिव्यकुण्ड (श्रीराधाकुण्ड) की मैं स्तुति करता हूँ।।11।।
जिसका जल स्पर्श करने से शुद्धचित्त में किसी एक अद्भुत रसमयी वृत्ति का तत्काल की उदय होता है, जो केवल विशुद्ध अनंग रस के प्रवाह से सुशोभित है एवं सुन्दर गौर-उज्ज्वल कांति युक्त है, उसमें आनन्दमय श्रीयगुगलकिशोर नित्य विहार करते हैं, अतएव परम रमणीय श्रीवृन्दावन के भूषणस्वरूप श्रीश्यामकुण्ड की मैं शरण लेत हूँ।।12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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