सुजान-रसखान पृ. 97

सुजान-रसखान

सखी शिक्षा

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सवैया

मो हित तो हित है रसखान छपाकर जानहिं जान अजानहिं।
सोच चबाव चल्‍यौ चहुँधा चलि री चलि रीखत रोहि निदानहिं।
जो चहियै लहियै भरि चाहि हिये उहियै हित काज कहा नहिं।
जान दे सास रिसान दै नंदहिं पानि दे मोहि तू कान दै तानहिं।।221।।

तेरी गलीन मैं जा दिन ते निकसे मन मोहन गोधन गावत।
ये ब्रज लोग सो कौन सी बात चलाइ कै जो नहिं नैन चलावत।
वे रसखानि जो रीझहैं नेकु तौ रीझि कै क्‍यों न बनाइ रिझावत।
बावरी जौ पै कलंक लग्‍यौ तो निसंक है क्‍यौं नहीं अंक लगावत।।222।।

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