कवित्त
ब्याहीं अनब्याहीं ब्रज माहीं सब चाही तासौं,
दूनी सकुचाहीं दीठि परै न जुन्हैया की।
नेकु मुसकानि रसखानि को बिलोकति ही,
चेरी होति एक बार कुंजनि दिखैया की।
मेरो कह्यौ मानि अंत मेरो गुन मानिहै री,
प्रात खात जात न सकात सोहैं मैया की।
माई की अटंक तौ लौं सासु की हटक जौ लौं,
देखी ना लटक मेरे दूलह कन्हैया की।।220।।