सुजान-रसखान पृ. 96

सुजान-रसखान

सखी शिक्षा

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कवित्त

ब्‍याहीं अनब्‍याहीं ब्रज माहीं सब चाही तासौं,
दूनी सकुचाहीं दीठि परै न जुन्‍हैया की।
नेकु मुसकानि रसखानि को बिलोकति ही,
चेरी होति एक बार कुंजनि दिखैया की।
मेरो कह्यौ मानि अंत मेरो गुन मानिहै री,
प्रात खात जात न सकात सोहैं मैया की।
माई की अटंक तौ लौं सासु की हटक जौ लौं,
देखी ना लटक मेरे दूलह कन्‍हैया की।।220।।

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