सुजान-रसखान पृ. 92

सुजान-रसखान

मानवती राधा

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सवैया

जो कबहूँ मग पाँव न देतु सु तो हित लालन आपुन गौनै।
मेरो कह्यौ करि मान तजौ कहि मोहन सों बलि बोल सलौने।
सौहें दिबावत हौं रसखानि तूँ सौंहैं करै किन लाखनि लौने।
नोखी तूँ मानिन मान कर्यौ किन मान बसत मैं कीनी है कौनै।।210।।

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