सुजान-रसखान पृ. 91

सुजान-रसखान

मानवती राधा

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कवित्त

डहडही बैरी मंजु डार सहकार की पै,
चहचही चुहल चहूकित अलीन की।
लहलही लोनी लता लपटी तमालन पै,
कहकही तापै कोकिला की काकलीन की।।
तहतही करि रसखानि के मिलन हेत,
बहबही बानि तजि मानस मलीन की।
महमही मंद-मंद मारुत मिलनि तैसी,
गहगही खिलनि गुलाब की कलीन को।।209।।

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