सुजान-रसखान पृ. 86

सुजान-रसखान

राधा का सौंदर्य

Prev.png

सवैया

श्री मुख यों न बखान सकै वृषभान सुता जू को रूप उजारो।
हे रसखान तू ज्ञान संभार तरैनि निहार जू रीझन हारो।
चारु सिंदूर को लाल रसाल लसै ब्रज बाल को भाल टिकारो।
गोद में मानौं बिराजत है घनस्‍याम के सारे को सारे को सारो।।196।।

अति लाल गुलाल दुकूल ते फूल अली! अति कुंतल रासत है।
मखतूल समान के गुंज घरानि मैं किंसुक की छवि छाजत है।।
मुकता के कंदब ते अंब के मोर सुने सुर कोकिल लाजत है।
यह आबनि प्‍यारी जू की रसखानि बसंत-सी आज बिराजत है।।197।।

न चंदन खैर के बैठी भटू रही आजु सुधा की सुता मनसी।
मनौ इंदुबधून लजावन कों सब ज्ञानिन काढ़ि धरी गन सी।।
रसखानि बिराजति चौकी कुचौ बिच उत्‍तमताहि जरी तन सी।
दमकै दृग बान के घायन कों गिरि सेत के सधि के जीवन सी।।198।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः