कवित्त
कैंधो रसखान रस कोस दृग प्यास जानि,
आनि के पियूष पूष कीनो बिधि चंद घर।
कँधों मनि मानिक बैठारिबै को कंचन मैं,
जरिया जोबन जिन गढ़िया सुघर घर।
कैंधों काम कामना के राजत अधर चिन्ह,
कैंधों यह भौर ज्ञान बोहित गुमान हर।
एरी मेरी प्यारी दुति कोटि रति रंभा की,
वारि डारों तेही चित चोरनि चिबुक पर।।195।।