सुजान-रसखान पृ. 79

सुजान-रसखान

रास लीला

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सवैया

कीजै कहा जु पै लोग चबाव सदा करिबौ करि हैं बजमारौ।
सीत न रोकत राखत कागु सुगावत ताहिरी गावन हारौ।
आव री सीरी करैं अँखिया रसखान धनै धन भाग हमारौ।
आवत है फिरि आज बन्‍यौ वह राति के रास को नाचन हारौ।।183।।

सासु अछै बरज्‍यौ बिटिया जु बिलोके अतीक लजावत है।
मौहि कहै जु कहूँ वह बात कही यह कौन कहावत है।
चाहत काहू के मूँड़ चढ़यौ रसखान झुकै झुकि आवत है।
जब तैं वह ग्‍वाल गली में नच्‍यौ तब तै वह नाच नचावत है।।184।।

देखत सेज बिछी री अछी सु बिछी विष सो भिदिगो सिगरे तन।
ऐसी अचेत गिरी नहिं चेत उपाय करे सिगरी सजनी जन।
बोली सयानी सखि रसखानि बचै यौं सुनाइ कह्यौ जुवती गन।
देखन कौं चलियै री चलौ सब रस रच्‍यौ मनमोहन जू बन।।185।।

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