सुजान-रसखान पृ. 78

सुजान-रसखान

रास लीला

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सवैया

काछ नयौ इकतौ बर जेउर दीठि जसोमति राज कर्यौ री।
या ब्रज-मंडल में रसखान कछू तब तें रस रास पर्यौ री।।
देखियै जीवन को फल आजु ही लाजहिं काल सिंगार हौं बोरी।
केते दिनानि पै जानति हो अंखियान के भागनि स्‍याम नच्‍चौरी।।180।।

आजु भटू इक गोपकुमार ने रास रच्‍यौ इक गोप के द्वारे।
सुंदर बानिक सों रसखानि बन्‍यौ वह छोहरा भाग हमारे।
ए बिधना! जो हमैं हँसतीं अब नेकु कहूँ उतकों पग धारैं।
ताहि बदौं फिरि आबे घरै बिनही तन औ मन जौवन बारैं।।181।।

आज भटू मुरली-बट के तट नंद के साँवरे रास रच्‍यौ री।
नैननि सैननि बैननि सों नहिं कोऊ मनोहर भाव बच्‍यौ री।।
जद्यपि राखन कौं कुल कानि सबै ब्रज-बालन प्रान पच्‍यौ री।
तद्यपि वा रसखानि के हाथ बिकानी कौं अंत लच्‍यौ पै लच्‍यौ री।।182।।

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