सवैया
प्यारी पै जाइ कितौ परि पाइ पची समझाइ सखी की सौं बेना।
बारक नंदकिशोर की ओर कह्यौ दृग छोर की कोर करै ना।
ह्वै निकस्यौ रसखान कहू उत डीठ पर्यौ पियरौं उपरै ना।
जीव सो पाय गई पचिवाय कियौ रुचि नेह गए लचि नैंना।।153।।
सखियाँ मनुहारि कै हारि रही भृकुटी को न छोर लली नचयौ।
चहुवा घनघोर नयौ उनयौ नभ नायक ओर चित्ते चितयौ।
बिकि आप गई हिय मोल लियौ रसखान हितू न हियों रिझयौ।
सिगरो दुःख तीछन कोटि कटाछन काटि कै सौतिन बाँटि दियौ।।154।।
खेलै अलीजन के गन मैं उत प्रीतम प्यारे सों नेह नवीनो।
बैननि बोघ करै इत कौं उत सैननि मोहन को मन लीनो।
नैनति की चलिबी कछु जानि सखी रसखानि चितैवे कौं कीनो।
जा लखि पाइ जंभाइ गई चुटकी चटकाइ विदा करि दीनो।।155।।