सुजान-रसखान पृ. 52

सुजान-रसखान

मुरली प्रभाव

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सवैया

कान्‍ह भए बस बाँसुरी के अब कौन सखि! हमको चहिहै।
निसद्यौस रहे संग साथ लगी यह सौतिन तापन क्‍यौं सहिहै।।
जिन मोहि लियौ मन मोहन को रसखानि सदा हमको दहिहै।
मिलि आऔ सबै सखि! भागि चलै अब तौ ब्रज में बसुरी रहिहै।।118।।

ब्रज की बनिता सब घेरि कहैं, तेरो ढारो बिगारो कहा कस री।
अरी तू हमको जम काल भई नैक कान्‍ह इही तौ कहा रस री।।
रसखानि भली विधि आनि बनी बसिबो नहीं देत दिसा दस री।
हम तो ब्रज को बसिबोई तजौ बस री ब्रज बेरिन तू बस री।।119।।

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