सवैया
काल्हि भटू मुरली-धुनि में रसखानि लियौ कहुं नाम हमारौ।
ता छिन ते भई बैरिनि सास कितौ कियौ झाँकन देति न द्वारौ।।
होत चवाव बलाई सों आलो जो भरि शाँखिन भेटिये प्यारौ।
बाट परी अब री ठिठक्यो हियरे अटक्यौ पियरे पटवारौ।।116।।
आज भटू इक गोपबधू भई बावरी नेकु न अंग सम्हारै।
माई सु धाइ कै टौना सो ढूँढ़ति सास सयानी-सवानी पुकारै।
यौं रसखानि घिरौ सिगरौ ब्रज आन को आन उपाय बिचारै।
कोउ न कान्हर के कर ते वहि बैरिनि बाँसरिया गाहि जारै।।117।।