सवैया
दानी नए भए माँगत दान सुने जु है कंस तौ बाँधे न जैहौ।
रोकत हौं बन में रसखानि पसारत हाथ महा दुख पैहो।
टूटें छरा बछरादिक गोधन जो धन है सु सबै पुनि रेहौ।
जै है जो भूषन काहू तिया को तो मौल छलाके लला न बिकैहौ।।103।।
छीर जौ चाहत चीर गहैं एजू लेउ न केतिक छीर अचैहौ।
चाखन के मिस माखन माँगत खाउ न माखन केतिक खैहौ।
जानति हौं जिय की रसखानि सु काहे कौ एतिक बात बढ़ैहौ।
गोरस के मिस जो रस चाहत सो रस कान्हजू नेकु न पैहौ।।104।।