सुजान-रसखान पृ. 105

सुजान-रसखान

वियोग-वर्णन

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सवैया

आये कहा करि कै कहिए वृषमान लली सों लला दृग जोरत।
ता दिन तें अँसुवान की धार रुकी नहीं जद्यपि लोग निहोरत।
बेगि चलो रसखान बलाइ लौं क्‍यों अभिमानन भौंह मरोरत।
प्‍यारे! सुंदर होय न प्‍यारी अबै पल अधिक में ब्रज बोरत।।238।।

गोकुल के बिछुरे को सखी दुख प्रान ते नेकु गयौ नहीं काढ़्यौ।
सो फिर कोस हजार तें आय कै रूप दिखाय दधे पर दाध्‍यौ।|
सो फिर द्वारिका ओर चले रसखान है सोच यहै जिय गाढ़्यौ।
कौन उपाय किये करि है ब्रज में बिरहा कुरुक्षेत्र को बाढ़्यौ।।239।।

गोकुल नाथ बियोग प्रलै जिमि गोपिन नंद जसोमति जू पर।
बाहि गयौ अँसुवान प्रवाह भयौ जल में ब्रजलोक तिहू पर।।
तीरथराज सी राधिका सु तो रसखान मनौं ब्रज भू पर।
पूरन ब्रह्म ह्वै ध्‍यान रह्यौ पिय औधि अखैबट पात के ऊपर।।240।।

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