सुजान-रसखान पृ. 104

सुजान-रसखान

वियोग-वर्णन

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कवित्त

काह कहूँ सजनी संग की रजनी नित बीतै मुकुंद कोंटे री।
आवन रोज कहैं मनभावन आवन की न कबौ करी फेरी।
सौतिन-भाग बढ़्यौ ब्रज मैं जिन लूटत हैं निसि रंग घनेरी।
मो रसखानि लिखी बिधना मन मारिकै आयु बनी हौं अहेरी।।237।।

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