सुजान-रसखान पृ. 10

सुजान-रसखान

अनन्‍य भाव

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कवित्त

कहा रसखानि सुख संपत्ति समार कहा,
कहा तन जोगी ह्वै लगाए अंग छार को।
कहा साधे पंचानल, कहा सोए बीच नल,
कहा जीति लाए राज सिंधु आर-पार को।
जप बार-बार तप संजम वयार-व्रत,
तीरथ हजार अरे बूझत लबार को।
कीन्‍हौं नहीं प्‍यार नहीं सैयो दरबार, चित्‍त,
 चाह्यौ न निहार्यौ जौ पै नंद के कुमार को।।21।।

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