श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
सोलहवाँ अध्याय
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्यस्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्॥13॥
यह मुझे आज मिल गया और इस मनोरथ को मैं (फिर) प्राप्त करूँगा। यह धन तो मेरा है और यह (धन) भी फिर मेरा ही हो जायगा।।13।।
इदं क्षेत्रपुत्रादिकं सर्व मया मत्सामर्थ्येन एव लब्धम्, न अदृष्टादिना, इमं च मनोरथम् अहम् एव प्राप्स्ये, न अदृष्टादिसहितः; इदं धनं मत्सामर्थ्येन लब्धं मे अस्ति, इदम् अपि पुनः मे मत्सामर्थ्येन एव भविष्यति।।13।।
(तथा वे समझते हैं कि) यह जमीन और पुत्रादि सब हमने अपने सामर्थ्य से ही प्राप्त किये हैं, इसमें अदृष्ट (प्रारब्ध) आदि कारण नहीं है। इस मनोरथ को मैं स्वयं ही प्राप्त करूँगा, न कि प्रारब्ध की सहायता से। यह अपने सामर्थ्य से प्राप्त किया हुआ मेरा धन है, फिर भी इतना धन मुझे अपने सामर्थ्य से ही मिलेगा।।13।।
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