श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
पंद्रहवाँ अध्याय
श्रीभगवानुवाच-
ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥1॥
श्रीभगवान् बोले- ऊपर जड़वाले और नीचे शाखाओं वाले अश्वत्थ को अव्यय कहते हैं; वेद जिसके पत्ते हैं। उसको जो जानता है, वह वेदवेत्ता है।।1।।
यं संसाराख्यम् अश्वत्थम् ऊर्ध्व मूलम् अधःशाखम् अव्ययं प्राहुः श्रुतयः-‘ऊर्ध्वमूलोऽवाक्शाख एषोऽश्वत्थः सनातनः।’[1] ‘ऊर्ध्वमूलामवाक्शाखं वृक्षं यो वेद सम्प्रति’ [2] इत्याद्याः।
‘यह सनातन अश्वत्थ ऊपर मूल और नीचे शाखावाला है।’ ‘ऊपर मूल और नीचे शाखा वाले वृक्ष को जो इस समय भलीभाँति जानता है।’ इत्यादि श्रुतियाँ जिस संसाररूप वृक्ष को ऊपर मूल और नीचे शाखा वाला तथा अव्यय बतलाती हैं।
सप्तलोकोपरिनिविष्टचतुर्मुखादित्वेन तस्य ऊर्ध्वमूलत्वम्, पृथ्वी निवासिसकलनरपशुमृगपक्षिकृमिकीटपतंगस्थावरान्ततया अधः शाखत्वम्, असंगहेतुभूताद् आसम्यग् ज्ञानोदयात् प्रवाहरूपेण अच्छेद्यत्वेन अव्ययत्वम्।
यस्य च अश्वत्थस्य छन्दांसि पर्णानि आहु:; छन्दांसि श्रुतय:।
सातों लोकों के ऊपर रहने वाला चतुर्मुख ब्रह्मा इसका आदि है, इसलिये जो ऊपर मूलवाला है। पृथ्वीलोक में बसने वाले सब मनुष्य, पशु, मृग, पक्षी, कृमि, कीट, पतंग और स्थावर तक फैला होने के कारण जो नीचे शाखा वाला है। अनासक्ति के हेतुभूत सम्यक् ज्ञान के उदय होने तक प्रवाह रूप से अच्छेद्य होने के कारण जो अव्यय है।
जिस अश्वत्थ वृक्ष के छन्द-वेद पत्ते बतलाये गये हैं।
‘वायव्यं श्वेतमालभेत भूतिकाम’ [3] ‘ऐन्द्राग्रमेकादशकपालं निर्वपेत् प्रजाकामः’ [4] इत्यादि श्रुतिप्रतिपादितैः काम्यकर्मभिः विवर्धते अयं संसारवृक्षः; इति छन्दांसि एव अस्य पर्णानि, पत्रैः हि वृक्षो वर्धते।
‘विभूति की कामना वाला वायु देवता सम्बन्धी श्वेतसत्त्व की बलि दे।’ ‘प्रजा की कामना वाला इन्द्र और अग्नि-देवता के लिये ग्यारह पात्रों में पुरोडाश अर्पण करे।’ इत्यादि श्रुतियों से प्रतिपादित काम्यकर्मों से यह संसार वृक्ष बढ़ता है, इसलिये वेद ही इसके पत्ते हैं, क्योंकि पत्तों से ही वृक्ष बढ़ा करता है।
यः तम् एवम्भूतम् अश्वत्थं वेद स वेदवित्, वेदो हि संसारवृक्षस्य छेदोपायं वदति, छेद्यस्य वृक्षस्य स्वरूपज्ञानं छेदनोपायज्ञानोपयोगि इति वेदविद् इति उच्यते।।1।।
ऐसे उस अश्वत्थ वृक्ष को जो जानता है, वह वेदवेत्ता है, क्योंकि वेद ही इस संसार वृक्ष को काटने का उपाय बतलाता है और काटने योग्य इस संसारवृक्ष के स्वरूप का ज्ञान भी काटने के उपायों को समझने में उपयोगी है, इसलिये उसके ज्ञाता को वेदवेत्ता कहा जाता है।।1।।
|