श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
चौदहवाँ अध्याय
सत्त्वादीनां बन्धद्वारभूतेषु प्रधानानि आह-
सत्त्व आदि गुणों के बन्धनकारक कारणों में जो प्रधान हैं, उनको बतलाते हैं-
सत्त्वं सुखे सञ्जयति रज: कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे सञ्जयत्युत॥9॥
अर्जुन! सत्त्वगुण सुख में और रजोगुण कर्म में लगाता है, परन्तु तमोगुण ज्ञान को ढककर फिर प्रमाद में भी लगाता है।।9।।
सत्त्वं सुखसंगप्रधानम्, रजः कर्मसंगप्रधानम्, तमः तु वस्तुयाथात्म्य ज्ञानम् आवृत्य विपरीतज्ञानहेतुतया कर्तव्यविपरीतप्रवृत्तिसंग प्रधानम्।।9।।
सत्त्वगुण में (मनुष्य के बन्धन का) सुखासक्ति प्रधान कारण है। रजोगुण में कर्मासक्ति प्रधान है और तमोगुण वस्तु के यथार्थ बोध को ढककर विपरीत ज्ञान का कारण होने से उसमें कर्तव्यविरुद्ध निषिद्ध कर्मों में प्रवृत्ति-विषयक आसक्ति प्रधान है।।9।।
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