श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य पृ. 319

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
तेरहवाँ अध्याय

अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रह:॥7॥

मानहीनता, दम्भहीनता, अहिंसा, क्षमा, सरलता, आचार्य की उपासना, शौच, स्थिरता और मन का भलीभाँति निग्रह।। 7।।

अमानित्वम् उत्कृष्टजनेषु अवधीरणा रहितत्त्वम्। अदम्भित्वं धार्मिकत्व यशः प्रयोजनतया धर्मानुष्ठानं दम्भः तद्रहितत्त्वम्। अहिंसा वाङ्मनःकायैः परपीडारहितत्त्वम्। क्षान्तिः परैः पीड्यमानस्य अपि तान् प्रति अविकृतचित्तत्त्वम्। आर्जवं परान् प्रति वाड्मनः कायवृत्तीनाम् एकरूपता।

उत्तम पुरुषों के प्रति तिरस्कार बुद्धि के न होने का नाम ‘अमानित्व’ है। धार्मिकपन के यश की प्राप्ति के लिये धर्मानुष्ठान करने का नाम दम्भ है, उसके न होने का नाम ‘अदम्भित्व’ है। मन, वाणी और शरीर से दूसरे को पीड़ा किये जाने पर भी उनके प्रति चित्त में विकार न होने का नाम क्षान्ति (क्षमा) है। दूसरों के लिये मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति का एकरूप होना ही ‘आर्जव’ है।

आचार्योपासनम् आत्मज्ञानप्रदायिनि आचार्ये प्रणिपातपरि प्रश्नसेवादिनिरतत्त्वम्। शौचम् आत्म ज्ञानतत्साधनयोग्यता मनोवाक्कायगता शास्त्रसिद्धा। स्थैर्यम् अध्यात्म शास्त्रसिद्धा। स्थैर्यम् अध्यात्मा शास्त्रोदितेषु अर्थेषु निश्चलत्वम्। आत्म विनिग्रहः- आत्मस्वरूपव्यतिरिक्त विषयेभ्यो मनसो निवर्तनम्।।7।।

आत्मज्ञान देने वाले आचार्य को प्रणाम करने का, उनसे प्रश्न करने का और उनकी सेवा आदि में लगे रहने का नाम ‘आचार्य की उपासना’ है। मन, वाणी और शरीर में आत्मज्ञान और उसके साधन की शास्त्रसिद्ध योग्यता प्राप्त हो जाने का नाम ‘शौच’ है। अध्यात्मशास्त्र में कही हुई बात पर निश्चल भाव का नाम ‘स्थैर्य’ है और आत्म स्वरूप के अतिरिक्त विषयों से मन को हटाये रखने का नाम ‘आत्मविनिग्रह’ है।।7।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता -रामानुजाचार्य
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 1
अध्याय 2 17
अध्याय 3 68
अध्याय 4 101
अध्याय 5 127
अध्याय 6 143
अध्याय 7 170
अध्याय 8 189
अध्याय 9 208
अध्याय 10 234
अध्याय 11 259
अध्याय 12 286
अध्याय 13 299
अध्याय 14 348
अध्याय 15 374
अध्याय 16 396
अध्याय 17 421
अध्याय 18 448

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