मैंने तो तुमसे प्रेम किया था,
फिर दुःख मिलने की बात क्यों सोचती?
वह मधुर मूर्ति,
वह मन्द मुसकान,
वह चित्ताकर्षक रूप,
वह भोलापन,
आह!
अब समझ में आया कि
भोली मूर्ति में कितनी कठोरता छिपी रहती है।
अच्छा फल मिला मुझे।
प्रियतम!
तुम नहीं आते तो न सही,
किंतु मुझे इस योग्य तो कर दो कि
स्वतंत्रता पूर्वक अपने क्रीड़ा-स्थलों पर विचरण कर सकूँ,