बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 103

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

16. यह है प्रेम-परिणाम

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मैंने तो तुमसे प्रेम किया था,
फिर दुःख मिलने की बात क्यों सोचती?
वह मधुर मूर्ति,
वह मन्द मुसकान,
वह चित्ताकर्षक रूप,
वह भोलापन,
आह!
अब समझ में आया कि
भोली मूर्ति में कितनी कठोरता छिपी रहती है।
अच्छा फल मिला मुझे।
प्रियतम!
तुम नहीं आते तो न सही,
किंतु मुझे इस योग्य तो कर दो कि
स्वतंत्रता पूर्वक अपने क्रीड़ा-स्थलों पर विचरण कर सकूँ,

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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