बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 104

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

16. यह है प्रेम-परिणाम

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तुम्हारी मधुर स्मृहित में मग्न रहा करूँ।
पर तुम्हें क्या पड़ी है,
तुम क्यों सुनने लगे।
देखो कान्हा!
इन मोटी रस्सियों का बन्धन
भला मेरे इस कोमल शरीर के योग्य था?
जिन अंगों का स्पर्श करके
तुम अत्यन्त आनन्द का अनुभव करते थे,
उनकी यह दुर्दशा?
क्या कहा जाय!
तुमसे कुछ कहना व्यर्थ है।
यह सब मेरी ही भूल है।
इतना तड़पने के बाद समझ में आया,
यह है प्रेम-परिणाम।
(मूर्च्छित होकर वहीं गिर जाती है।)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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