सवैया
आज सँवारति नेकु भटू तन, मंद करी रति की दुति लाजै।
देखत रीझि रहे रसखानि सु और छटा विधिना उपराजै।
आए हैं न्यौतें तरैयन के मनो संग पतंग पतंग जू राजै।
ऐसें लसै मुकुतागन मैं तित तेरे तरौना के तीर बिराजै।।199।।
प्यारी की चारु सिंगार तरंगनि जाय लगी रति की दुति कूलनि।
जोबन जेब कहा कहियै उर पै छवि मंजु अनेक दुकूलनि।
कंचुकी सेत मैं जावक बिंदु बिलोकि मरैं मघवानि की सूलनि।
पूजे है आजु मनौ रसखान सु भूत के भूप बंधूक के फूलनि।।200।।
बाँकी मरोर गटी भृकुटीन लगीं अँखियाँ तिरछानि तिया की।
क सी लाँक भई रसखानि सुदामिनी तें दुति दूनी हिमा की।।
सोहैं तरंग अनंग को अंगनि ओप उरोज उठी छलिया की।
जोबनि जोति सु यौं दमकै उकसाइ दइ मनो बाती दिया की।।201।।