सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
पहला अध्याय(अर्जुन विषाद योग)धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा- हे संजय! राजा कुरु की तपस्याभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों (कौरवों और पाण्डवों) ने किस प्रकार युद्ध किया, इसे विस्तार से मुझे सुनाओ।
संजय बोले- जब दुर्योधन ने वज्रव्यूह- रचना से खड़ी हुई पाण्डवों की सेना को देखा तो वह भयभीत हो गया और द्रोणाचार्य के पास जाकर उन्हें पाण्डवों के विरुद्ध उकसाते हुए बोला कि ‘महाराज, देखिये, जो आपको मारने के लिए ही पैदा हुआ है, वही धृष्टद्युम्न पाण्डवों का सेनापति बनकर आपके सामने खड़ा है! इसलिए आप बड़ी सावधानी से युद्ध करें। धृष्टद्युम्न के सिवाय और भी बहुत से योद्धा पाण्डव सेना में खड़े हैं; जैसे- युयुधान (सात्यकि), विराट, द्रुपद, धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज, शैब्य, युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्र (प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन)। ये सभी योद्धा महारथी[1] हैं।’ |
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अध्याय | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ जो शस्त्र और शास्त्र में प्रवीण है तथा युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है, उस वीर पुरुष को ‘महारथी’ कहते हैं।
- ↑ शिखण्डी पहले जन्म में भी स्त्री था और इस जन्म में भी पहले स्त्री था, पीछे पुरुष बना था। इसलिए भीष्म जी उसे स्त्री ही समझते थे और उन्होंने उससे युद्ध ने करने की प्रतिज्ञा कर रखी थी। शिखण्डी शंकर के वरदान से भीष्म जी को मारने के लिए पैदा हुआ था।
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