सहज गीता -रामसुखदास पृ. 3

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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पहला अध्याय

(अर्जुन विषाद योग)

पितामह भीष्म ने दुर्योधन को इस प्रकार घोर निराशा देखा तो उन्होंने उसे प्रसन्न करने के लिए सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया। यद्यपि भीष्म जी ने दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए ही शंख बजाया था, तथापि कौरव सेना इसे युद्धारंभ की घोषणा समझ लिया। अतः पूरी कौरव सेना में एक साथ शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग और नरसिंघे बाजे बज उठे। इन बाजों से बड़ा भयंकर शब्द हुआ।

इधर पाण्डव सेना में सफेद घोड़ों से जुते हुए महान् रथ पर विराजमान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन ने भी अपने-अपने शंखों को बड़े जोर से बजाय। भगवान श्रीकृष्ण ने ‘पांचजन्य’, अर्जुन ने ‘देवदत्त’, भीम ने ‘पौण्ड्र’, युधिष्ठिर ने ‘अनन्त विजय’, नकुल ने ‘सुघोष’ और सहदेव ने ‘मणिपुष्पक’ नामक शंख बजाये। इनके सिवाय काशिराज, शिखण्डी, धृतद्मुम्न, विराट, सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और अभिमन्यु ने भी अपने-अपने शंख बजाये। पाण्डव सेना की शंख ध्वनि का इतना भयंकर असर हुआ कि उससे कौरवों के हृदय विदीर्ण हो गये।
[यहाँ एक बात ध्यान देने की है कि कौरव सेना के शंख आदि बाजे बजे तो उनकी ध्वनि का पाण्डवों पर कुछ भी असर नहीं हुआ, पर पाण्डव सेना के शंख बजे तो उनकी ध्वनि से कौरवों के हृदय विदीर्ण हो गये। इसका कारण यह है कि पाण्डवों का पक्ष धर्म का और कौरवों का पक्ष अधर्म का था। जो धर्म का पालन करते हैं, उनका हृदय मजबूत होता है और जो अधर्म, पाप, अन्याय करते हैं, उनका हृदय कमज़ोर होता है।]
जब अर्जुन ने अपनी सेना को शस्त्र उठाये देखा तो उन्होंने भी उत्साह से भरकर अपना गाण्डीव धनुष उठा लिया और सारथिरूप बने हुए भगवान श्रीकृष्ण से बोले- हे अच्युत! आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाइये और वहाँ तब तक खड़ा रखिये, जब तक मैं यह न देख लूँ कि मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना है और दुष्टबुद्धि दुर्योधन की सहायता के लिए कौन-कौन राजालोग आये हुए हैं। संजय बोले- अर्जुन की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने रथ को खड़ा कर दिया और अर्जुन से बोले कि ‘हे पार्थ! युद्ध के लिए इकट्ठे हुए इन कुरुवंशियों को देख।’ भगवान् के द्वारा कहे हुए ‘कुरुवंशियों को देख’- इन शब्दों का अर्जुन पर गहरा असर हुआ। उस असर के कारण जब अर्जुन ने युद्धभूमि में पिताओं को, पितामहों को, आचार्यों को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को, मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को खड़े हुए देखा तो उनमें कौटुम्बिक मोह जाग्रत् हो गया।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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