बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 123

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

19. मैं तो चली पिया की डागरिया

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ठहर, निगोड़े दर्पण!
बार-बार गिर क्यों पड़ता है?
मेरे काम में बाधा देते तुझे लज्जा नहीं आती?
मेरी समझ में तो अब कुछ कसर नहीं है।
अरे हाँ, पैरों में महावर नहीं लगाया।
संकोच के कारण कन्हैया के नेत्र नीचे ही रहेंगे,
मेरे पैरों पर उनकी दृष्टि अवश्य ठहरेगी।
इसलिये पैरों को सूना रखना ठीक नहीं,
खूब चटक महावर लगाना चाहिये।
हाँ, अब ठीक है।
सासजी!
पतिदेव!
क्षमा करना,
मनमोहन के वियोग को सहन करने की शक्ति
अब नहीं रह गयी,
इसी से आप लोगों की सेवा छोड़कर जा रही हूँ।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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