बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 122

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

19. मैं तो चली पिया की डागरिया

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अब देर करना उचित नहीं,
चलना चाहिये।
कहीं सासजी आ गयीं
तो मन-की-मन में ही रह जायेगी।
अभी श्रृंगार भी तो करना है।
अपने कुँवर कन्हैया के पास क्या भद्देरूप में जाऊँगी?
यह चूरन ठीक नहीं,
उहुँ, यह भी अच्छी नहीं,
यह लहँगा तो बिल्कुल नहीं जँचता,
हाँ, यह मेरे प्यारे की पंसद की वस्तु है।
अरे, यह तो बहुत देर हुई जा रही है,
अभी वेणी बाँधना, सेंदुर लगाना, काजल लगाना,
अंगराग आदि लेपना तो शेष ही है।
ईश्वर करे सास जी किसी के घर अटक जायें।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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