अब देर करना उचित नहीं,
चलना चाहिये।
कहीं सासजी आ गयीं
तो मन-की-मन में ही रह जायेगी।
अभी श्रृंगार भी तो करना है।
अपने कुँवर कन्हैया के पास क्या भद्देरूप में जाऊँगी?
यह चूरन ठीक नहीं,
उहुँ, यह भी अच्छी नहीं,
यह लहँगा तो बिल्कुल नहीं जँचता,
हाँ, यह मेरे प्यारे की पंसद की वस्तु है।
अरे, यह तो बहुत देर हुई जा रही है,
अभी वेणी बाँधना, सेंदुर लगाना, काजल लगाना,
अंगराग आदि लेपना तो शेष ही है।
ईश्वर करे सास जी किसी के घर अटक जायें।