बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 110

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

17. यही आशा तो बैरिन हो गयी

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माना विरह-वेदना से तू छलनी हो गया है,
तेरे भीतर में घाव ही घाव हैं,
मनमोहन की एक ही मधुर मुस्कान से
तेरे सब घाव भर जायेंगे।
तू फिर हरा-भरा हो जायेगा,
तुझे पहले से भी अधिक मान मिलेगा।
तू अपनी सारी पीड़ाओं को भूल जायेगा।
उस मधुर मूर्ति के सामने यदि
तू अपनी व्यथाओं को स्मरण भी करना चाहेगा
तो तुझे याद तक न आयेगी कि कभी तू तड़पा भी है।
तू ही बता,
तड़प-तड़प कर अधीर होकर नष्ट हो जाना अच्छा, या
प्यारे के मुखारविन्द को दर्शन करके फिर
आनन्द में मग्न होना अच्छा?

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क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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