श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
हित वृन्दावन
श्री हरिराम व्यास ने वृन्दावन को प्रेम की राजधानी बतलाया है जिसके ‘राजा नायक शिरोमणि श्री श्याम सुन्दर और तरुणि-मणि श्री राधिका है’। पाताल से वैकुंठ तक के सब लोक इस राजधानी के थाने हैं। छयानवै कोटि मेघ वृन्दावन के बागों को सींचते हैं और चारों प्रकार की मुक्ति वहाँ पानी भरती रहती है। सूर्य-चन्द्र वहाँ के पहरेदार हैं, पवन खिदमतगार है, इन्दिरा चरणदासी है और निगमवाणी भाट हैं। धर्म वहाँ का कोतवाल है ओर सनकादि ज्ञानी चार गुप्तचर हैं। सतोगुण वहाँ का द्वार पाल है, काल राज-बन्दी है, कर्म दण्डदाता है और काम-रति सुख वहाँ की ध्वजा है। वहाँ कनक और मरकत-मणि की भूमि है ओर कुसुमति कुंज-महल में कमनीय शयनीय नित्य रचना हो रही है। यह स्थान सबके लिये अगम है। यहाँ के राजा-रानी कभी वियुक्त नहीं होते और व्यासदास इस महल में पीकदानी लिये हुए सदैव उपस्थित रहते हैं।‘ नव कुँवर चक्र चूडा नृपति साँवरौ राधिका तरुणि मणि पट्टरानी। कृष्णदासजी कहते है- ‘जहाँ प्रत्येक कुंज में सुखद शयनीय की रचना हो रही है, जहाँ प्रत्येक कुंज प्रेम का अयन है, जहाँ प्रत्येक कुंज में प्रेम -संयोग हो रहा है, जहाँ प्रत्येक कुंज में श्रृंगार की नित्य-नूतन सामग्री सजी हुई है, जहाँ प्रत्येक कुंज अत्यन्त सुवासित है, जहाँ कुंज-कुंज में मणिजटित रासमंडल विद्यमान हैं, जहाँ कुंज-कुंज में सहचरियों के समूह सेवा में नियुक्त हैं, श्रीवृन्दावन-रानी का वह अभिराम धाम वृन्दावन शोभा से झलमला रहा है।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ व्या. वा. 46
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