हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 81

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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प्रेम और रूप

वृन्‍दावन-रस के रसिक सौन्‍दर्य को रूप कहते हैं। रूप से इनका तात्‍पर्य आकृतिवान सौन्‍दर्य से है। प्रेम और सौन्दर्य आकृति-हीन भी होते हैं, जैसे प्रेम-वासना और स्वर-सौन्दर्य किन्तु आकृति-हीन प्रेम-वासना आकृतिवान प्रिय-पदार्थ के भोग से ही निबिड़ बनती अहि और सुंदर रमणी के कंठ से निकली हुई स्वर-लहरी ही स्वर-सौन्दर्य की निबड़ अनुभूति कराती है। अत: प्रेम और सौन्‍दर्य की निबिद्‌ अनुभूतियाँ आकृति-सापेक्ष होती हैं। इसके विरुद्ध विज्ञानानंद आकृति हीन होता है, क्‍योंकि उसमें ज्ञाता, ज्ञेय, ज्ञान का लय हो जाता है। प्रेमानंद किंवा प्रेम-सौनदर्यानंद में भोवता-भोग्‍य सदैव प्रकाशित रहकर उसको आस्‍वादनीय बनाये रखते है। विज्ञानानंद कभी आस्‍वाद्य किंवा रस नहीं बनता , इसलिये उसमें आकृति का निषेध किया जा सकता है। आस्‍वाद के लिये भोक्‍ता-भोग्‍य एवं उनकी आकृति और गुण अनिवार्य हैं और इनको मनुष्‍य-कल्पित अथवा माया-कल्पित कहकर छोड़ा नहीं जा सकता। रसरूपता को प्राप्‍त होकर आकृति और गुण उस महा-आनंद के अंग बन जाते हैं जिसको सभी प्रेमीगण विज्ञानानंद से कहीं अधिक श्रेष्‍ठ बतलाते हैं। प्रेमियों ने तो ब्रह्मानंद को प्रेमानंद का सबसे बड़ा आवरण माना है; क्‍योंकि प्रेमानंद के आधारभूत आकृति और गुण ब्रह्मानंद में माया-कल्पित कह कर छोड़ दिये जाते हैं-

ब्रह्म जोति तेज जहाँ, जोगेस्‍वर घरैं ध्‍यान।
ताही कौ आवरण तहाँ, नहिं पावै कोऊ जान।।[1]

बिनु रसिकनि वृन्‍दाविपिन, को है सकत निहार।
ब्रह्म कोटि ऐस्‍वर्ज के, वैभव की तहाँ बार।।[2]

आगे के पृष्‍ठों में नित्‍य-प्रेम-विहार के चारों अंगो- श्री राधा, श्‍यामसुन्‍दर, सहचरी और श्री वृन्‍दावन-के प्रेम-रूप का परिचय, रसिक संतों की दृष्टि से, देने की चेष्टा करेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री ध्रुवदास-नेह मंजरी
  2. श्री ध्रुवदास-प्रेमावली

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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