हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 79

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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प्रेम और रूप


राधावल्‍लभीय विचारकों ने ऐसी ही परिभाषा देने की चेष्‍टा की है। इनका सौन्‍दर्य-संबन्‍धी एक विशेश दृष्टिकोण है जो नवीन होने के साथ स्‍वभाविक भी है। हम देखते हैं कि सौन्‍दर्य का बोध सरस चित्त में ही होता है; नीरस व्‍यक्ति उसका यथोचित ग्रहण नहीं कर पाता। सरसता के तारतम्‍य के साथ सौन्‍दर्य-बोध का तारतम्‍य देखा जाता है। प्रेमवान चित्त ही सरस होता है और प्रेमी व्‍यक्ति ही सौन्‍दर्य का सम्‍यक् आस्‍वाद कर सकता है। इससे प्रतीत होता है कि प्रेम और सौन्‍दर्य में कोई सहज संबंध है। प्रेम के बिना जिस प्रकार सौन्‍दर्य की सम्‍यक् प्रतीति नहीं होती, उसी प्रकार सौन्‍दर्य के बिना प्रेम सम्‍यक् रूप से आस्‍वादनीय नहीं बनता।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रेम और सौन्‍दर्य का ग्रहण एक काम-वृत्ति के द्वारा ही होता है। प्रेम को तो सभी मनोवैज्ञानिक काम-वृत्ति का परिपाक मानते हैं। सौन्‍दर्य को इस वृत्ति से संबधित नहीं किया गया है किन्‍तु मनुष्‍य रचित सौंन्‍दर्य- जैसे कला कृतियों, संगीत और काव्य के सौन्दर्य-को कई आधुनिक मनोवैज्ञानिक काम वृत्ति का ही विकास मानते हैं। अब रह जाता है प्राकृतिक सौन्‍दर्य और नैतिक गुणों का सौन्‍दर्य। इनका ग्रहण भी सहृदय व्‍यक्ति ही करता है। अत: यह दोनों भी मनुष्‍य की सहज प्रेम वृत्ति से ही संबंधित मानने चाहिये।

प्रेम और सौन्‍दर्य के इस नित्‍य एवं सहज साहचर्य को देखकर राधावल्‍लभीय विचारकों ने निर्णय किया है कि यह दोनों किसी एक ही तत्‍व की दो अभिव्‍यक्तियाँ हैं और वह तत्‍व परात्‍पर प्रेम किंवा ‘हित’ है। परात्‍पर प्रेम ही प्रेम और सौन्‍दर्य के दो रूपों में नित्‍य व्‍यक्‍त है। एक ही तत्‍व के दो रूप होने के कारण यह दोनों स्‍वभावत: परस्‍पर-संबधित हैं। इन दोनों में भोक्ता-भोग्‍य का संबंध माना गया है। प्रेम भोक्ता है और सौन्‍दर्य भोग्‍य।

प्रेम और सौन्‍दर्य का प्रथम परिचय हमको लोक में होता है। यहाँ प्रत्‍यक्ष रूप से सौन्‍दर्य भोग्‍य होता है और मनुष्‍य की प्रेम-वृत्ति उसकी भोक्ता। यह दोनों सहज-रूप से एक दूसरे की ओर आकृष्‍ट भी रहते हैं, किन्‍तु देश-काल-पात्र की स्‍थूल मर्यादायें यहाँ इस बात को स्‍पष्‍ट नहीं होने देतीं कि ये दोनों एक ही प्रेम-तत्‍व के दो रूप हैं और स्‍वभावत: एक-दूसरे से नित्‍य-संबंधित हैं।

कलाकार, कवि और गायक अपनी कृतियों में, प्रतिभा के बल से, स्‍थूलता का अतिक्रमण करके प्रेम और सौन्‍दर्य को एक सूत्र में ग्रथित करने की चेष्‍टा करते हैं। ताजमहल के कलाकार ने शाहजहाँ के प्रेम और मुमताज बेगम के सौन्‍दर्य को मिलाकर इस अनुपम कला कृति की रचना की है, इसीलिये, इसके दर्शन से एक अखंड प्रेम-सौन्‍दर्य गरिमा की अनुभूति हमको होती है। कवि और गायक की भी वही कृतियाँ उत्तम मानी जाती हैं जिनमें प्रेम के साथ सौन्‍दर्य की और सौन्‍दर्य के साथ प्रेम की व्‍यंजना होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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